एक बार छोटे-छोटे मेढकों के एक समूह ने एक competition का आयोजन किया | और उनका लक्ष्य एक कुंवे के सबसे ऊपर तक पहुंचना था। इस competition को देखने के लिए काफी भीड़ जुट गई। वास्तव में, भीड़ में मौजूद कोई भी यह विश्वास नहीं कर रहा था कि छोटे मेंढक कुंवे के टॉप तक पहुंच पाएंगे।
भीड़ में मौजूद लोग अजीबोगरीब बातें करने लगे। कोई कह रहा था कि रास्ता बहुत ही कठिन है। तो किसी ने कहा- इनमें से कोई भी टॉप पर नहीं पहुंच पाएगा। यह कुंवा बहुत ऊंचा है। ये सफल हो जाएं, इसकी कोई उम्मीद ही नहीं है।
ऐसी बातें सुनकर छोटे-छोटे मेंढक बारी-बारी से हिम्मत हारने लगे। सिर्फ वही मेंढक बचे, जिनके अंदर अभी जोश और उम्मीद थी। वह तेजी से ऊपर चढ़ते जा रहे थे। भीड़ का बोलना लगातार जारी था कि बहुत कठिन है ऊपर तक पहुंचना।
कितने मेंढक थककर गिर गए थे यह बातें सुनकर अन्य मेंढक भी हार मानने लगे। लेकिन उन्हीं में से एक मेंढक लगातार ऊंचाई पर चढ़ता जा रहा था। भीड़ की बातें उस पर बेअसर थी। आखिर तक उसने हार नहीं मानी।
अंत में सारे मेंढक भीड़ की बातें सुनकर हार मानकर बैठ गए, लेकिन वह मेंढक आगे बढ़ता गया और आखिर में वह कुंवे के टॉप पर पहुंच गया। ऐसे में थककर बैठे बाकी नन्हें मेढक यह जानना चाह रहे थे कि इस अकेले के लिए यह कैसे संभव हुआ?
एक प्रतिभागी ने उस छोटे मेंढक से पूछा कि लक्ष्य तक पहुंचने की ताकत तुम्हें कहां से मिली? तब पता चला कि वह विजेता मेंढक दरअसल बधिर (बहरा) था।
कहानी से सीख : (Story Moral)
इस कहानी से यही सीख मिलती हैं कि जीवन में सफलता के रास्ते पर चलना है तो सबसे पहले उन लोगों को सुनना बंद कर दें जो आपको सिर्फ निराश करते हैं या फिर नकारात्मक सोच रखते हैं। दूसरी बात ये वहीं चीजें सुनें जो आपको अपने सपने पूरे करने के लिए प्रेरित करती हे क्योंकि जो हम सुनते हैं उसी से मिलते-जुलते हमारे कार्य होते हैं।
निष्कर्ष
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