द्रौपदी का पांच पांडवो से विवाह – द्रौपदी के पूर्व जनम की कथा – महाभारत कथा

132
droupadi pandav vivah

आइए आज हम जानते है की द्रौपदी का पांच पांडवो से विवाह कैसे हुआ। और कैसे महाराज द्रुपद ने पांचाली का पांच पांडवो के साथ विवाह स्वीकार किया। यह कहानी महाभारत से ली गयी है और तथ्यों के आधारित यह कथा है। यह कथा सतप्रतिशत सत्य है।

स्त्रोत :- महाभारत
रचयता :- द्वैपायन मुनि वेदव्यास
लेखक :- भगवान गणेश
कथा :- द्रौपदी विवाह

द्रौपदी का पांच पांडवो से विवाह :-

अंत में महाराज द्रुपद भी द्रौपदी का विवाह पांचो पांडवो से करना स्वीकार्य किया।
द्रुपद बोले- ‘महर्षे ‘ आपके इस वचनको न सुननेके कारण ही पहले मैंने वैसा करने (कृष्णाको एक ही योग्य पतिसे ब्याहने) का प्रयत्न किया था; परंतु विधाताने जो रच रखा है, उसे टाल देना असम्भव है; अतः उसी पूर्वनिश्चित विधानका पालन करना उचित है। भाग्यमें जो लिख दिया है, उसे कोई भी बदल नहीं सकता। अपने प्रयत्नसे यहाँ कुछ नहीं हो सकता। एक वरकी प्राप्तिके लिये जो तप किया गया, वही पाँच पतियोंकी प्राप्तिका कारण बन गया; अतः दैवके द्वारा पूर्वनिश्चित विधानका ही पालन करना उचित है। पूर्वजन्ममें द्रौपदीने अनेक बार भगवान् शिवसे कहा- ‘प्रभो! मुझे पति दें।’ जैसा उसने कहा, वैसा ही वर उन्होंने भी उसे दे दिया। अतः इसमें कौन-सा उत्तम रहस्य छिपा है, उसे वे भगवान् ही जानते हैं। यदि साक्षात् भगवन शंकर ने ऐसा विधान किया है तो यह धर्म हो या अधर्म, इसमें मेरा कोई अपराध नहीं है। ये पाण्डवलोग विधिपूर्वक प्रसन्नतासे द्रौपदी का पाणिग्रहण करें; विधाताने ही कृष्णाको इन पाण्डवोंकी पत्नी बनाया है।
वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! तदनन्तर द्वैपायन मुनि व्यासने धर्मराज युधिष्ठिरसे कहा- ‘पांडुकुमारो ! आज ही तुम लोगोंके लिये पुण्य-दिवस है। आज चन्द्रमा भरण- पोषणकारक पुष्य नक्षत्रपर जा रहे हैं; इसलिये आज पहले तुम्हीं कृष्णाका पाणिग्रहण करो’. व्यासजीका यह आदेश सुनकर पुत्रोंसहित राजा द्रुपदने वर-वधूके लिये कथित समस्त उत्तम वस्तुओंको मँगवाया और अपनी पुत्री कृष्णाको स्नान कराकर बहुत-से रत्नमय आभूषणोंद्वारा विभूषित किया। तत्पश्चात् राजाके सभी सम्बन्धी, मन्त्री, ब्राह्मण और पुरवासी अत्यन्त प्रसन्न हो विवाह देखनेके लिये आये और बड़ोंको आगे करके बैठे। तदनन्तर राजा द्रुपदका वह भवन श्रेष्ठ पुरुषोंसे सुशोभित होने लगा। उसके आँगनको विस्तृत कमल और उत्पल आदिसे सजाया गया था। वहाँ एक ओर सेनाएँ खड़ी थीं और दूसरी ओर रत्नोंका ढेर लगा था। इससे वह राजभवन निर्मल तारकाओंसे संयुक्त आकाशकी भाँति विचित्र शोभा धारण कर रहा था। इधर युवावस्थासे सम्पन्न कौरव राजकुमार पाण्डव वस्त्राभूषणोंसे विभूषित और कुण्डलोंसे अलंकृत हो अभिषेक और मंगलाचार करके बहुमूल्य कपड़ों एवं केसर, चन्दनसे सुशोभित हुए। तब अग्निके समान परम तेजस्वी अपने पुरोहित धौम्यजीके साथ विधिपूर्वक बड़े-छोटेके क्रमसे वे सभी प्रसन्नतापूर्वक विवाहमण्डपमें गये।
तत्पश्चात् वेदके पारंगत विद्वान् मन्त्रज्ञ पुरोहित धौम्यने वेदीपर प्रज्वलित अग्निकी स्थापना करके उसमें मन्त्रोंद्वारा आहुति दी और धर्मराज युधिष्ठिरको बुलाकर कृष्णाके साथ उनका गठबन्धन कर दिया। वेदोंके परिपूर्ण विद्वान् पुरोहितने उन दोनों दम्पतिका पाणिग्रहण कराकर उनसे अग्निकी परिक्रमा करवायी, फिर उनका विवाहकार्य सम्पन्न कर दिया। इसके बाद संग्राममें शोभा पानेवाले युधिष्ठिरको छुट्टी देकर पुरोहितजी भी उस राजभवनसे बाहर चले गये। इसी क्रमसे कौरव-कुलकी वृद्धि करनेवाले, महारथी राजकुमार पाण्डवोंने एक-एक दिन परम सुन्दरी द्रौपदीका पाणिग्रहण किया ।। १३
देवर्षिने वहाँ घटित हुई इस अद्भुत, उत्तम एवं अलौकिक घटनाका वर्णन किया है कि सुन्दर कटिप्रदेशवाली द्रौपदी प्रतिवार विवाहके दूसरे दिन कन्याभावको ही प्राप्त हो जाती थी ।। १४ ।।
विवाह-कार्य सम्पन्न हो जानेपर द्रुपदने महारथी पाण्डवोंको दहेजमें बहुत-सा धन और नाना प्रकारकी उत्तम वस्तुएँ रत्न ,मणिकय समर्पित कीं। सुन्दर सुवर्णकी मालाओं और सुवर्णजटित जुओंसे सुशोभित सौ रथ प्रदान किये, जिनमें चार-चार उत्तम प्रकार के घोड़े जुते हुए थे। पद्म आदि उत्तम लक्षणोंसे युक्त सौघोड़े तथा पर्वतोंके समान ऊँचे और सुनहरे हौदोंसे सुशोभित सौ हाथी और बहुमूल्य शृंगार-सामग्री, वस्त्राभूषण एवं हार धारण करनेवाली एक सौ नवयौवना दासियाँ भी भेंट कीं सोमकवंशमें उत्पन्न महानुभाव राजा द्रुपदने इस प्रकार अग्निको साक्षी बनाकर प्रत्येक सुन्दर दृष्टिवाले पाण्डवोंके लिये अलग-अलग प्रचुर धन तथा प्रभुत्व-सूचक बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण अर्पित किये। विवाहके पश्चात् इन्द्रके समान महाबली पाण्डव प्रचुर रत्नराशिके साथ लक्ष्मीस्वरूपा कृष्णाको पाकर पांचालराज द्रुपदके ही नगरमें सुखपूर्वक विहार करने लगे। राजन् ! सभी पाण्डव द्रौपदीकी सुशीलता, एकाग्रता और सद्व्यवहारसे बहुत संतुष्ट थे। इसी प्रकार द्रुपदकुमारी कृष्णा भी उस समय अपने उत्तम नियमोंद्वारा पाण्डवोंका आनन्द बढ़ाती थी।
इस प्रकार द्रौपदी का विवाह पांच पांडवो से सम्पन हुआ।

आपको यह कथा पसंद आई होगी। आपको ऐसी कथा को जानने के लिए नित्य हमारी पोस्ट को निहारे।